Whisper of an Unfired Shot

इंसाफ़ अक्सर नज़रंदाज़ करता है रौशनी और अंधकार के बीच की जगहों को
चीखें अपना निशान छोड़ती हैं, आंसुओं से काली हुई दीवारों पर 

पारदर्शिता न हो तो ढाँचे गलने लगते हैं
पर यह पारदर्शिता वास्तविक है या फिर सैद्धांतिक?
क्या यह पारदर्शिता वो पारदर्शिता है, जो शहीदी कुएँ के आस पास लगे शीशों से नीचे ताकने देगी उन चीख़ों को?
जो अपने निशान छोड़ गई हैं उन दीवारों पर
या फिर पारदर्शिता की पर्देदारी है ऐसी किसी चीज़ को छुपाने में, जो कि निष्प्रभ है?
क्या यह वही, निष्प्रभ पारदर्शिता है जिसका प्रतीक है यह मीनार, जो रंगों से सुशोभित है? 

 

 


ये वही रंग हैं, जो बैसाखी पर उस गली के पार नहीं आ पाए
जब से डायर ने अपने सैनिक तैनात कर किसी को बाहर नहीं निकलने दिया
इस रास्ते में अब अनेक मूर्तियाँ है, जो हमारा स्वागत करती हैं
ये रंगो की श्रृंखला बुनती है इक ऐसी सच्चाई, जिसका रंग सतरंगी है, लाल नहीं।
वह लाल, जो लौ का लाल है, लौह का लाल है, जंग का लाल है, ज़ंग का लाल है, और लहू का लाल भी। 

ऐसा कहते हैं, कि सत्य से मनुष्य को जीता जा सकता है
परंतु कौनसी सच्चाई?
बहुमत की सच्चाई?
सामाजिक सच्चाई?
वैज्ञानिक सच्चाई?
ऐतिहासिक सच्चाई?
राजनैतिक सच्चाई?
भावनात्मक सच्चाई?
झूठ की सच्चाई?

एक व्यक्तिगत सच्चाई। 

ये सच्चाई बुनती है एक पहरा चारों ओर, हर छोर, जो उस पारदर्शी शीशे से भी नहीं देखा जा सकता। 

यह पहरा बुनता है

गुत्थी
विडम्बना
और कफ़न । 


// Justice often is ignorant of the liminal that lies between the light and the dark;
Screams, etch themselves on walls, blackened by tears of death

Structures begin to melt in the absence of transparency
But is this transparency actual, perceptual, or conceptual?
Is this the transparency that allows seeing from the glasses around the martyr’s well;
Into its depth, scratching with our eyes to hear the screams embedded within the walls?
Or the veiling of transparency is an inherent attribute that affords hiding something completely opaque?
Is the color studded tower the proof of this affordance of transparency?

The same colors, that could not cross the narrow alley on the day of Baisakhi; Since general Dwyer positioned his soldiers surrounding Jallianwala Bagh
to ensure no one could escape.
Within this alley, countless statues now welcome each visitor;
This cluster of colours weaves a truth, that is seven coloured- instead of just red.
This red, is the red of iron, of war, of rust, and of blood. 

It is said that truth is what wins over us;
But which truth?

A majoritarian truth?
A Social truth?
A Scientific Truth?
A historical truth?
A political truth?
An Emotional Truth?
Or the truth, that lies dormant within lies?

A  personal, subjective truth. 

The periphery constructed by this truth, cannot be seen by that transparent glass; 

This periphery, weaves and knots; 

Ironies
paradoxes
and coffins. //

Thus, the truth, lies neither in its being,
nor its affect

The truth, is what is remembered;

It can be forgotten.

All it takes, is too much of it.
All at once.

 

 

समय ढाँचो को नग्न कर देता है
शायद राख ही ढाँचा है, और ढाँचा ही राख
सतही मरम्मत उपरांत, इतिहास की मौत का उदघाटन
असलित्यत के ऊपर, बनावट का थपन।

पर क्या है जो ख़राब हो जाता है संजो लेने से, और क्या जिसे संजोया न गया वह ख़राब हो जाएगा?
क्या है वह परिधि, जिसके इस पार कुछ सही है और उस पार कुछ ग़लत?
क्या आवश्यक है ऐसी एक बिंदु का होना, जो समय के इन धागों को पिरो सके?
ज़रूरत है सोचने की एक नए बिंदु के औचित्य के बारे में-
क्या यह बिंदु वास्तव में एक नया सहारा है?
या वह गोली है जो देखती है पेड़ में घुसी गोलियों को, जिन के बाहर अब सफ़ेद घेरे बना दिए गए हैं ताकि वे अपनी ओर ध्यान आकर्षित कर सकें?
क्या यह गोली, सोचती है उन 6 गोलियों के बारे में, जो 20 साल बाद दागी गई, उन अनंत गोलियों के एवज़ में?

// The current of time strips the structures, of themselves;
Perhaps, ash is what constitutes the structure, and all structures are feeble ash;
Surfacial renovations, invite the inauguration of the death of history.
A beautified, aestheticised non-real, imposes its being on the real. 

But what is truly lost, or tampered, when not conserved, and is there no way to save anything without conservation?
What is the threshold that houses right on wrong on either ends?
Is it necessary to have a new locus, where the strands of time can converge? We need to think, of the viability of such a locus;
Is it something new?
Or is it the bullet that is housed within the trees of Jallianwala Bagh that have been contoured with a white circle to draw attention to it?
Does this locus, or this bullet, think of the 6 bullets shot post 20 years of compression, in lieu of those innumerable bullets fired that day? //

 

 

 

एक बार बिंदुओं के एक जमघट ने रेखा बनकर बाक़ी बिंदुओं को चेतावनी दी।
अन्य बिंदु झट से चौकोर आकार बनाकर खड़े हो गये।
बिंदुओं का जमघट रेखा से बढ़कर एक गोल रेखांकरण का रूप लेने लगा
और देखते ही देखते इस रेखांकरण ने उस चौकोर को घेर लिया।
चौकोर इस गोले को पास आते देख तित्तर बित्तर भागने लगे।
इस गोले के भाग जो बिंदु थे, वे चाहते तो उन बिंदुओं का ख़ात्मा कर सकते थे
परंतु इसमें एक गंभीर समस्या थी।

वैज्ञानिक, भौतिक, और सिद्धांतिक  तौर पर बिंदुओं में कोई अंतर कभी साबित नहीं हो सका है। किसी भी बिंदु के बीच अंतर कर पाना असंभव है। अंततः, ये चौकोर और गोलाकार रेखाएँ साथ मिलकर कुछ अजीब सा आकर बानने लगी, जिसके आकर का वर्णन कर पाना संभव नहीं था। न तो यह चौकोर थे, न ही गोल। 

इन बिंदुओं को स्किज़ोफ़्रेनिया का शिकार बनाया गया। आज तक कोई नहीं जानता, की यह घटना सच थी, या फिर भ्रम। 

// Once, a cluster of points formed a line and started to threaten the other points.
These other points gathered together and formed a square.
This cluster of points then, started to take the form of a circular contour;
and soon surrounded the square.
The constituent points of the square went haywire;
the cluster could have easily wiped them
but there was a serious crisis. 

There is no difference between a point scientifically, ontologically and conceptually, that could become a marker of differentiation between various points. Thus, when these circular and square assemblies of points met, they could not distinguish between each other. A weird shape started to take form, which could not be put into words. Neither was it circular, nor a square. 

It seemed that the schizophrenia had taken the point hostage; Hence, till date we have no idea whether this is a myth, or a reality that continues to shape us. //

 

 

And thus it came to be
A compressed precision against a non-newtonian liquid reality;
Lucid enough to touch, stiff the moment you tried to barge out of it.

The image free from its indexical contract either finds a context, or creates its own; 

Masking, morphing, concealing, revealing worlds and truths, at its own accord. 

The statue of Udham Singh, a symbol of a compressed, precise revenge, thus finds itself helplessly inviting the subjects of the historical slaughterbench; to a renovated, pristine, ornamentalised history. 

 

 

शह, और मात।
दो ऐसे खिलाड़ियों द्वारा खेली जा रही एक शतरंज की बाज़ी, जिनकी कोई पहचान नहीं है

समय के ताने बाने में फँसी हुई यह शक्सियत, जो न अपने हाथ महसूस कर पा रही है, और ना ही पैर
बस उसे दिखाई पड़ रही है, तो एक सूखे पेड़ की डाली जो काँटों से भारी ठीक उस के सामने है।
जैसे ही इस शक्सियत ने इस डाली को पकड़ने की चेष्ठा की, तो यह डाली एक कौए मैं तब्दील हो गई ।
स्याह, काली। जिसकी आँखें गहरी लाल थी 

इस कौए की काँव मैं एक ऐसे अतीत का वर्णन था, जो इस भविष्य से ख़ुद का आकरण करता है।
जैसे किसी तूफ़ान में बादल, जो निराकार है, पर समस्त समुद्र जितना भारी और सघन।
अचानक इस कौए की काँव शांत हुई, और एक फुसफुसाहट में तब्दील  हो गई।
इस फुसफुसाहट के गलियारों में से कई अक्षर इक्कठे हुए और एक सवाल का ढाँचा बनने लगा- 

इस असलियत और बनावट के बीच,
नवीकरण और संरक्षण के बीच
बिंदुओं, और रेखाओं के बीच
रफ़्तार, और याद के बीच
आख़िर असली दुश्मन कौन है,
और ऊधम सिंह अब किस पर निशाना साधेगा? 

// Check, and mate.
An intricate game of chess, being played by two players who have no identity.

A figure, caught within the threads of time, unable to feel its hands or legs;
All it sees, is a dried tree trunk, full of thorns right in front of its eyes.
The moment this figure tried to get a hold of this tree, it turned into a crow- Pitch black, whose eyes were blood red.

The crow, cawed of a time that talked of the past, shaped by this future.
As formless as a cloud in the storm, as heavy and dense as the ocean itself;
Suddenly, the cawing stopped, and turned into a whisper
Within the alleys of whispers, letters started to form the template of a question:

Between the real and the non-real
Between renovation and conservation
Between locus and lines,
Between speed and memory;
Who is the real enemy?
And who will now Udham Singh shoot? //

 

Rahul Juneja is a multiform artist based between Karnal and New Delhi in India, who works with analog and digital photography, videography, drawings, mixed-media installations, and hybrid object-making practices. 

He is interested in loosening images, devising myths, and intercepting speculative shadowlands that lurk at the contour of our realities.